धीरूभाई अंबानी कभी मेले में भजिया बेचते थे | Dhirubhai Ambani Success Story

Dhirubhai Ambani Struggle Life

 Dhirubhai Ambani Success Story In Hindi – Indian Corporate World में  सबसे ज्यादा Successful Businessman माने जाने वाले धीरूभाई अंबानी कभी मेले में भजिया बेचते थे, पर आज  धीरूभाई ने जितनी बड़ी सफलता अर्जित की, वह किसी सामान्‍य व्‍यक्ति के लिए आसान नहीं है।

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धीरूभाई अंबानी का जीवन संघर्ष
Dhirubhai Ambani Success Story In Hindi

Reliance Industries के Founder Dhirubhai Ambani ने मात्र 1000 रुपए से Reliance Industries की शुरुआत की थी। 6 जुलाई 2002 को जब उनकी death हुई तब तक रिलायंस 62 हजार करोड़ की कंपनी बन चुकी थी। इस दौरान उन्‍होंने कई कई उतार-चढ़ाव को पार किया। आज मैं धीरूभाई अंबानी के संघर्ष से सफलता की बड़ी कहानी को कुछ शब्दों में लिखने का प्रयास कर रहा हूँ।

आइए जानते हैं धीरूभाई अंबानी की सच्ची और प्रेरणा देने वाली सफलता की कहानी के बारे में जो हमें जानना बहुत जरूरी है।

धीरूभाई अंबानी का संघर्ष से भरा प्रेरणादायक जीवन

जन्म एवं परिवार

धीरूभाई अंबानी का जन्म 28  दिसंबर, 1933 जूनागढ़ (जो की अब भारत के गुजरात राज्य में है) में बहुत ही सामान्य मोध परिवार में हुआ था। हीराचंद गोवर्धनदास अंबानी और  जमनाबेन अंबानी के तीन पुत्र व दो बेटियाँ थीं, जिसमे धीरूभाई अंबानी उनके दूसरे पुत्र थे। उनके पिता हीराचंद गोवर्धनदास अंबानी एक स्कूल में शिक्षक थे।

पारिवारिक स्थिति

परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था, इसलिए धीरूभाई अंबानी ने केवल हाईस्‍कूल तक की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद उन्होंने छोटे मोटे काम करना शुरू किया। हलाकि, उनके छोटे मोटे काम से परिवार की स्थिति में कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा था, पर कौन जानता था की एक बहुत बड़ी Success उनका इंतज़ार कर रही है।

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Dhirubhai Ambani Struggle Life Story

बचपन से ही उनकी व्यापारी बुद्धि तेज थी, एक बार उन्होंने एक wholesaler से मूंगफली के तेल का एक टिन खरीदा और सड़क के किनारे Retail में तेल बेच दिया। उन्होंने इस लेनदेन से लाभ के रूप में कुछ रुपये अर्जित किए।

जब स्कूल के गर्मियों की छुट्टी होती थी तब भी वो कुछ काम करते रहते थे। कई बार वो मेले में भजिया भी बेचा करते थे।

आर-एडीएजी के मुताबिक, 1949 में जब धीरूभाई अंबानी 16  वर्ष के थे तो नौकरी की तलाश में काबोटा नामक शिप से यमन के अदन शहर पहुंचे जहा उनके बड़े भाई  रमणीकलाल पहले से ही ‘ए. बेस्सी एंड कंपनी’ कार्यरत थे।  

बड़े भाई  रमणीकलाल ने उन्हें भी  कंपनी के साथ 300 रूपये प्रति माह के वेतन पर पेट्रोल पंप पर लगवा दिया । दो सालों बाद ए. बेस्सी एंड कंपनी’ जब शेल’ नामक कंपनी के प्रोडक्‍ट्स की वितरक बनी तो धीरूभाई अंबानी को अदन बंदरगाह पर कम्पनी के फिलिंग स्टेशन में मैनेजर बना दिया गया।

उन्हें कुछ बड़ा करना था, और यही सपना लेकर वो वापस भारत आ गए।  लगभग 1 साल बाद वो अपने सपने को पूरा करने के लिए जेब में केवल 500  रुपए और बहुत बड़ा हौसला लेकर लेकर मुंबई आ गए। 

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काफी सारे संघर्ष और पूँजी की कमी ने भी धीरूभाई अंबानी के इरादों को पिघलने नहीं दिया और एक छोटे से कमरे, एक मेज़, तीन कुर्सी, टेलिफोन और सिर्फ दो सहयोगी के साथ रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन की रूपरेखा बना ली।

उस  समय भारत में सबसे ज्‍यादा मांग पॉलिस्‍टर की थी और विदेश में भारत के मसालों की थी।  उनकी कंपनी भारत से मसाला भेजती थी और वहां से पॉलिस्‍टर के धागे मंगाती थी। नई सोच और विश्वाश के साथ वो इस काम को आगे बढ़ाते गए।

1966 में कपड़े बनाने के कारोबार में कदम रखा और अहमदाबाद, नैरोड़ा (Naroda) में कपड़ा मिल की शुरुआत की। उन्होंने विमल ब्रांड की शुरुआत की जो की उनके बड़े भाई रमणिकलाल अंबानी के बेटे, विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था।

Dhirubhai Ambani with Both Son & Team
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1992 में ग्‍लोबल मार्केट से फंड जुटाने वाली रिलायंस देश की पहली कंपनी बनी। 2000 के आसपास रिलायंस पेट्रो कैमिकल और टेलिकॉम के सेक्‍टर में आई और धीरूभाई अंबानी देश के सबसे रईस व्‍यक्ति बनकर उभरे और 6  जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी अपनी यादें छोड़ गए।

हालाँकि वो आज हमारे बीच नहीं हैं पर आज भी लोग कहते हैं कि यदि Business करना है तो Dhirubhai Ambani से सीखों।

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